Saturday, August 20, 2011

मैंने देखा है l


कौन कहता है, कि सूरज पूरब से बढ़ता है?

मैंने, उसे पाताल से निकलते देखा है l




लोग कहते है, क्या किया जिंदगी में?

पर मैंने, अपने को बचपन से देखा है l




माना कि, कीचड़ में कमल खिलता है l


पर पानी, निरंतर बना रहता है l






जिंदगी के, उतार-चढाव को सबने देखा!


पर मैंने, लड़ना सीखा है l






लोग, पैसो से कैरियर बनाते है !


मैंने, सड़क से उठते आदमी को देखा है l






विश्व का उच्च संविधान होते हुए भी !

धर्म, जाति, आरक्षण पर लड़ते देखा है l





सरकार संसद में बजट पेश करती है l

पर मैंने गरीब से महंगाई पर जीतना सीखा है l

-विवेक कुमार

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