Monday, December 5, 2011

गिलहरी


पेड़ की छाँव में.. गिलहरी को खाते देखा,

हरियाली घास से कुछ उठाते देखा..

रहा गया मुझसे... मै उसके पास गया,

पास पाकर देख मुझे.. उसको भय का ज्ञात हुआ!!

भागना चाहती थी.. लेकिन भाग सकी,

क्योंकि मैंने पुचकारते हुए खाने का सामान दिया...

खाकर जैसे मदहोश हुई, मेरी आहट की भी फिकर हुई..,

आपस मे खेलते रहे और, चंद लम्हों मे जैसे दोस्त बने...

यकीं नही होता दिल को वो लम्हा याद करके...

क्या वो मेरा इंतजार करते होंगे..?

-विवेक कुमार