पेड़ की छाँव में.. गिलहरी को खाते देखा,
हरियाली घास से कुछ उठाते देखा..
रहा न गया मुझसे... मै उसके पास गया,
पास पाकर देख मुझे.. उसको भय का ज्ञात हुआ!!
भागना चाहती थी.. लेकिन भाग न सकी,
क्योंकि मैंने पुचकारते हुए खाने का सामान दिया...
खाकर जैसे मदहोश हुई, मेरी आहट की भी फिकर न हुई..,
आपस मे खेलते रहे और, चंद लम्हों मे जैसे दोस्त बने...
यकीं नही होता दिल को वो लम्हा याद करके...
क्या वो मेरा इंतजार करते होंगे..?
-विवेक कुमार